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गुलाम वंश -1206 AD – 1290 AD

गुलाम वंश: 1206 AD में कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा गुलाम वंश की स्थापना की गई।

इस वंश को ममलुक वंश भी कहा जाता है। इस वंश का शासन 1206 AD से 1290 AD tak रहा।

गुलाम वंश के प्रमुख शासक

84 वर्ष के लंबे कार्यकाल के दौरान गुलाम वंश के अनेक शासकों ने दिल्ली पर शासन किया जिनका विवरण निम्नानुसार नीचे दिया गया है।

कुतुबुद्दीन ऐबक (1206 ADसे 1210 AD)

ऐबक का अर्थ _ चंद्रमा का स्वामी

कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने विरोधियों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए।

उपाधियां

  • हातिम द्वितीय
  • लाख बख्श अथवा लाखों का दान देने वाला
  • कुरान खा

विशेष :-

1. इसने सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की थी

2. अपने नाम से सिक्के नहीं चलाएं

3. अपने नाम का खुत्बा नहीं पड़वाय।

4. 1208 AD में गोरी के उत्तराधिकारी गयासुद्दीन ने इसे दासता से मुक्त किया।

5. 1210 AD मैं लाहौर में कुतुबुद्दीन ऐबक की चौगान खेलते हुए मृत्यु हो गई।

5. कुतुबुद्दीन ऐबक ने ढाई दिन का झोपड़ा का कुतुब मीनार का निर्माण करवाया था।

इल्तुतमिश (1210 AD -1236 AD)

यह इलबरी तुर्क था।

यह कुतुबुद्दीन ऐबक का गुलाम तथा दामाद था।

दिल्ली सल्तनत का शासक बनने से पूर्व हुई है बदायूं ( यूपी )का गवर्नर था।

किसके द्वारा “तुर्कान ए चहलगानी” का गठन किया गया था जिसे 40 दल भी कहा जाता है। यह 40 गुलामों का दल था।

इसने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया।

इसके द्वारा इक्ता व्यवस्था प्रारंभ की गई जिसका अर्थ है काम के बदले जमीन देना।

इसने अरबी पद्धति पर 2 सिक्के निकाले।

1.टका — चांदी का सिक्का

2. जीतल— तांबे का सिक्का

1216 AD में तराइन का तृतीय युद्ध इल्तुतमिश तथा याल्दओजी के बीच हुआ जिसमें इल्तुतमिश की विजय हुई।

1221 AD में ख्वारिज्मी के शासक जलालुद्दीन अकबरनी iltutmish से सहायता मांगी परंतु इल्तुतमिश ने उसकी सहायता करने से इंकार कर दिया इस प्रकार इल्तुतमिश ने अपने साम्राज्य को मंगोल आक्रमण से बचा लिया।

1229 AD मैं इल्तुतमिश ने खलीफा से सुल्तान की उपाधि धारण की।

इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।

यह तो तमीज ने अपने पुत्र नसीरुद्दीन को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया किंतु नसरुद्दीन की मृत्यु लड़ते हुए बंगाल में हो जाने का अगला उत्तराधिकारी अपनी पुत्री रजिया सुल्तान घोषित किया।

1236AD मैं इल्तुतमिश की मृत्यु हो गई थी।

note_ इल्तुतमिश की कब्र कुतुब मीनार परिसर में स्थित है।

रुकनुद्दीन फिरोज (1236 AD)

इसके समय वास्तविक शक्तियां इसकी मां साह तुरकान के पास थी।

अमीर शाह तुरकान के नियंत्रण में थे।

रुकनुद्दीन योग्य शासक नहीं था वह आलसी परवर्ती का था।

रजिया लाल कपड़े पहन कर जुमे की नमाज पढ़ ली गई थी तथा उस पर जनता से न्याय की मांग की।

रजिया जनता के समर्थन से शासिका बनी थी।

रजिया सुल्तान (1236 AD से 1240 AD)

रजिया सुल्तान मध्यकालीन भारत की पहली और आखिरी महिला शासक थी।

यह कूबा व कुलहा पहन के दरबार में आती थी।

यह सिहासन का प्रयोग करती थी।

रजिया ने अल्तूनिया से विवाह किया था।

कैथल नामक स्थान पर डाकुओ ने रजिया व अल्तूनिया की हत्या कर दी थी।

बहराम शाह (1240 AD से 1242 AD)

भैरव सहायक के समय एक नए पद का सृजन किया गया था जिसका नाम नायब ए मुमलिकत रखा गया।

पहला नायब ए मुमलिकात — एतगिन

नसीरूद्दीन महमूद (1246 AD से 1266 AD )

यह बलबन की सहायता से सुल्तान बना था

यह बलबन का दामाद था।

इसने बलबन को नायब ए मुमलिकात नियुक्त किया था।

यह धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था तथा इसने अपनी जीविका हेतु टोपिया बनाता था साथ ही कुरान की प्रतिलिपि या लिखता था।

बलबन (1266 AD से 1286 AD)

यह इलबरी तुर्क था।

यह इल्तुतमिश का गुलाम था तथा 40 दल का सदस्य था।

यह राजस्व के दिव्य सिद्धांत में विश्वास करता था।

इसके अनुसार सुल्तान –

  • जिले इलाई – ईश्वर की छाया
  • नियाबात ए खुदाई – ईश्वर का प्रतिनिधि

बलबन के द्वारा प्रारंभ की गई ईरानी रीति रिवाज व प्रथाए

  • सिजदा – सुल्तान के आगे घुटने टेकना।
  • पाबोस – सुल्तान के पैर के अंगूठे को चुमना।
  • तुलादान
  • नवरोज – नव वर्ष

नोट – यह रक्त की शुद्धता पर विश्वास रखता था।

इसमें तुर्कान ए चहलगानी या 40 दल का दमन कर दिया था।

बलबन ने लोहा व रक्त की नीति में विश्वास करता था।

बलबन ने 2 विभागों का गठन किया था

  1. दीवान ए अर्ज – सैन्य विभाग
  2. दीवान ए बरीद – गुप्तर विभाग

क्यूमर्श

इसका संरक्षक जलालुद्दीन खिलजी था।

जलालुद्दीन ने केकूबाद तथ क्यूमर्श की हत्या करवा दी तथा एक न वंश खिलजी वंश की शुरुआत की।

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